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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 गीत-सरिता : सम्बन्धों से डर लगता ह

अपना प्यारा घर लगता है

यूँ तो सारा जग ही मुझको

करना माफ मुझे पर यारो

सम्बन्धों से डर लगता है

चाहत है चंदन बन महकूँ

नित जीवन बगिया महकाऊँ

पर कैसे समझाऊँ मन को

अब गंधो से डर लगता है

करना माफ मुझे पर यारो

प्रीत-रीत की पावन बेदी

तन-मन-धन सब कुछ न्योछावर

नहीं बाँधना पर बंधन में

अनुबन्धों से डर लगता है

करना माफ मुझे पर यारो

एक बूँद हूँ पर अन्तस् में

मैंने सागर को पाया है

बनने को सागर बन जाउँ

तटबंधो से डर लगता है

करना माफ मुझे पर यारो


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